सफर - मौत से मौत तक….(ep-26)
दरवाजे की आहट , और मन्वी कि घबराहट एक साथ शुरू हुई और कदमो की आवाज के साथ एक सुंदर नवयुवक सामने आया।
दूर से देखने पर समीर को एक जाने पहचाने अंकल और एक सुंदर सी लड़की घर पर नजर आयी, पास आते आते समीर राजू अंकल को पहचान चुका था , समीर ने मन ही मन सोचा- "पापा तो पीछे ही पड़ गए, कल मन्वी से शादी की बात कर रहे थे और आज उन्हें घर ही बुला लिया, हद होती है जिद की भी, लगता है कोई नया ड्रामा करना होगा, वरना ये इस लड़की से मेंरी शादी करके छोड़ेंगे।
समीर आगे बढ़ा और अंकल के पैर छुए और हालचाल पूछते हुए कहा- "कैसे हो अंकल जी? पापा ने तो सच मे सरप्राइज ही दे दिया, बताया होता कि आप आने वाले हो तो आफिस से थोड़ा जल्दी आने की कोशीश कर लेता मैं।"
चेहरे में तो मुस्कान थी मगर मन ही मन तो उसको पापा पर गुस्सा आ रहा था, और वो सोच रहा था कि अगर पापा ने पहले बताया होता तो मैं शाम के छः बजे तक भी ना आता।
" अरे कोई बात नही बेटा, हम कौन सा जाने लगे है। आज शाम तो हम दोस्तो के नाम है, तुम शाम तक भी आते तो कोई बात ही नही थी,भई पहले ऑफिस का काम जरूरी है" राजू बोला।
"क्यो नही अंकल जी, आप जाने का मन भी बनाकर बैठे होते तो मैं जिद करके आप लोगो को रोक लेता, आप दोनो दोस्त हो बचपन के मान लिया, मन्वी भी तो मेरी बचपन की दोस्त है, दो पीढ़ियों की दोस्ती है, कोई मामूली बात थोड़ी है जो छोटी सी मुलाकात में निपटा दिया जाएगा" समीर ने कहा।
अब समीर ने मन्वी की तरफ देखा और एक छोटा सा शब्द बहुत ही प्यार से कहा- "हेलोओव……"
"हाई….." हाथ हिलाते हुए मन्वी बोली।
नंदू भी समीर को देखकर मुस्करा रहा था। लेकिन नंदू अंकल को बहुत गुस्सा आ रहा था समीर पर….मगर क्या करता गलती उसकी अपनी थी, उसे ही संयम रखना चाहिए था। मगर अब कर भी क्या सकता था शिवाय तमाशा देखने के।
" आप लोग बैठो मैं चेंज करके आता हूँ" कहकर समीर अपने कमरे की तरफ चला था।
मन्वी के मन मे अलग ही लड्डू फुट रहे थे, समीर अब बदल चुका था। पहले जैसा झगड़ालू नही रहा….और उसका …हेलो… कहना, हय! , मन्वी बार बार समीर के मुंह से हेलोव सूनना चाहती थी। समीर इतने प्यार और इज्जत से बात करने लगा था। शायद बचपन गुजरने के बाद जब जवानी में कदम रखते है तो आचार-विचार व्यवहार सबकुछ बदल ही जाता है। और समीर में बहुत ही खूबसूरत बदलाव आए थे जो मन्वी को बहुत अच्छा लगा।
मन्वी इधर उधर दीवारों को देखदेखकर समय गुजार रही थी और इंतजार कर रही थी कब समीर बाहर आये। मगर समीर तो अंदर चुम्बक की तरह चिपक गया था।
समीर ने तो ड्रामा करना था प्यार और संस्कार का, वो कर लिया, और बाहर आऊंगा बोला लेकिन वो अंदर ही बिस्तर पर लेट गया और इशानी को फोन करके बतियाने लगा।
"ह्म्म्म….बाब बेटी दोनो आये है…." समीर ने फोन पर कहा।
"क्या करने आये है वो…." इशानी ने सवाल किया।
"मुझे क्या पता…. कल जैसी बात बाबूजी से मेरी हुई थी, उससे तो ऐसा ही लग रहा कि रिश्ते के बात करँगे, लेकिन बेशर्मी तो देखो पहले से प्लान बनाकर बैठे है रात को ठहरने का….अब भला जवान लड़की को साथ लेकर रातों में लोगो के घर कौन सोने जाता है, लेकिन फिर भी खुद को संस्कारी ही बोलेंगे और इज्जतदार भी।" समीर ने कहा।
"ओ मिस्टर….जवान लड़की पर फिसल मत जाना….गरीबो की आदत होती है अमीर लोगो पर डोरे डालने की, वो जरूर कुछ ना कुछ गड़बड़ करने की कोशीश करेंगे, थोड़ा दूर रहना उनसे" इशानी ने कहा।
"मैं दूर ही हूँ यार…. वो हॉल में बैठे है, और में चेंज करने अंदर आया और लेट गया" समीर बोला।
"इस तरह से दूर नही बाबा….उनसे बात करने में मुझे कोई एतराज नही है, लेकिन किसी तरह का रिश्ता रखने की जरूरत नही है, और मन्वी से दोस्ती मत कर लेना….याद है हमारे प्यार की शुरुआत भी दोस्ती से ही हुई थी" इशानी ने कहा।
"हद है यार! मुझपर जरा भी भरोसा नही है, और दोस्ती भले हजार लोगों से हजार बार हो जाये, मगर प्यार! प्यार तो बस एक ही बार होता है…. एक ही दिल था मेरे पास वो भी मैंने तुम्हें दे दिया।" समीर बोला।
"वेरी गुड….ये की ना आपने दिल जीतने वाली बात…." इशानी ने कहा।
समीर ने मुस्कराते हुए कहा- "दिल तो तुम्हारा कब के जीत लिया हूँ, अब बस तुम्हे जितना है, और कोशिश जारी है।
*****
बाहर नंदू, राजू आपस मे गप्पे लड़ा रहे थे, आधा घंटा हो चुका था समीर चेंज करके नही आया अभी तक।
राजू और नंदू तो गप्पे लगाकर टाइम पास कर रहे थे, स्टेशन नए रिक्शे वाले, पुराने ड्राइवर और नई सड़क….कुछ ऐसी बाते हो रही थी। हाँ कभी कभी उन रिक्शे वालो का जिक्र भी होता जिन्होंने अब राजू कि तरह ऑटो ले लिया है, और ऐसे लोगो का जिक्र आते ही नंदू के चेहरे पर मुस्कान और आंखों में एक खालीपन आ आने लग जाता, जिन्हें छिपाने के लिए वो टॉपिक चेंज कर देता था।
मन्वी के लिए समय सदियों सा लंबा हो रहा था, एक तरफ अंकल और पापा के गप्पो से बोर हो रही थी, ऊपर से समीर का इंतजार कर रही थी।
***
करीब एक घंटे बाद-
"समीर आया नही क्या बात….इतनी देर में तो नहाधोकर नए कपड़े हाथों हाथ सिलवाकर भी पहन लेते है, वो चेंज नही कर पाया" राजू बोला।
नंदू उसकी बात पर हंसते हुए बोला- "अरे , नही नही! जरूर कोई काम याद आ गया होगा, काम के पीछे तो वो सब भूल जाता है, खाना, पीना और उठना सोना तक भूल जाता है । जरूर कुछ काम पर लग गया होगा….मैं देखकर आता हूँ"
"अरे नही नही……रहने दो….करने दो काम, वैसे भी हमने कौन सा केश लड़वाना है….हहहह……" राजू बोला।
"चलो ठीक है, मैं चाय बना लाता हूँ…."नंदू ने कहा।
"अरे आप बैठिए….मैं बना लेती हूँ चाय…." मन्वी बोली।
"अरे नही बेटा! मैं बना लूँगा, रोज बनाता हूँ, आज कोई नई बात थोड़ी है।" नंदू बोला।
"आप बैठो भाईसाहब….मुझे तो बस मेरी मन्वी ले हाथ की चाय अच्छी लगती है….चाय और खाना बहुत अच्छा बनाती है मेरी बेटी….आज पीकर देखो एक बार इसके हाथ की चाय।" राजू बोला।
"इतनी तारीफ कर रहे हो तो ठीक है….इजाज़त है…." नंदू बोला,
"ओए होए…. वकील साहब ने अपने पापा को जज बनाकर रखा है, बस हथौड़ी की कमी है…." राजू हंसते हुए बोला।
"और क्या….अब बुढ़ापे में घर के जज ही बन जाये काफी है" नंदू ने कहा।
मन्वी चाय बनाने जाने लगी थी, जाते जाते पूछने लगी- "वो समीर जी भी पीते होंगे चाय तो"
"नही वो तो ग्रीन टी पीता है….थोड़ा पानी उबालकर उसमे टीबैग डुबोकर ठंडे होने के लिए छोड़ देना, समझ ना आये तो बुला लेना मुझे" नंदू बोला।
"जी ठीक है" मन्वी बोली
*****
थोड़ी देर में एक प्लेट में तीन कप चाय और एक कप ग्रीन टी लेकर मन्वी हाजिर हुई, शाम का वक्त था। नंदू उठकर अलमारी से एक बिस्किट का पैकेट निकाल लाया और प्लेट में खोलकर रख दिये। मन्वी ने तीनों चाय के कप टेबल पर रख दिये और बिना पूछे ग्रीन टी लेकर समीर के कमरे की तरफ चल पड़ी।
समीर का दरवाजा अंदर से लॉक नही था, समीर अब तक लेटा हुआ था लेकिन किसी के आने की आहट से वो बैठ गया, और इधर उधर कोई काम की वस्तु ढूंढने लगा, जब कुछ नही मिला तो तकिए के पास से पेन उठाकर टेबल में रखे डायरी हाथ मे ले लिया और एक्टिंग करने लगा जैसे बहुत जरुरी काम में व्यस्त है।
मन्वी ने दरवाजा खटखटाया तो अंदर से आवाज आई- " खुला ही है आ जाओ"
मन्वी अंदर आयी तो समीर ने हैरानी से कहा- "अरे तुम….मुझे बुला लेते, मैं आ जाता बाहर….तुम क्यो तकलीफ कर रहि हो"
"अरे इसमे तकलीफ कैसी….हरी चाय ही तो लायी हूँ…." मुस्कराते हुए मजाक के मूड में मन्वी ने कहा।
"इसे हरी चाय नही ग्रीन टी बोलते है, इतना तो आता ही होगा बोलना, ज्यादा अंग्रेजी नही भी आती तो" समीर मजाक में नही मजाक उड़ाते हुए बोला।
"जी, जानती हूँ, इंग्लिश कमजोर तो मेरी नही है, लेकिन सारे शब्द हिंदी में बोलो तो दो शब्द और सही।" मन्वी ने कहा।
"इधर रख दो" समीर बोला।
मन्वी ने ग्रीन टी रखी और बाहर की तरफ जाने लगी। तभी समीर ने उसे रोकते हुए कहा- "सुनो…"
"जी कहिए" मन्वी बोली।
"शाम को कुछ स्पेशल खाना या मंगवाना हो तो मेरे पापा को बोल देना, मैं इंतजाम कर दूंगा" समीर बोला।
"जी स्पेशल कुछ नही खाते हम….बस घर का बना खाना खाते है। बाकी आपको कुछ खिलाना है तो वो आपकी मर्जी,प्यार से जो मर्जी खिला दो" मन्वी ने कहा।
समीर थोड़ा मुस्कराया और मन्वी भी बाहर चली गयी।
अब समीर मन ही मन सोचने लगा- "प्यार से बोल रहा हूँ इतना काफी नही है क्या"
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आज पुष्पाकली को एक्स्ट्रा चार्ज देकर बुलाया गया था। और उसकी मदद करते हुए मन्वी भी किचन में व्यस्त थी, हालांकि बार बार नंदू मन्वी को बाहर बैठने को बोल रहा था
लेकिन जब तक डिंनर तैयार नही हुआ मन्वी कहाँ मानने वाली थी।
खाना खाते समय सब एक साथ बैठे हुए थे। सौभाग्य से मन्वी को समीर के बगल में बिठा दिया गया।,
नंदू तो खाने की तारीफ करते करते थक नही रहा था। समीर को भी दिल से खाना पसंद आया, लेकिन उसने जानबूझकर तारीफ नही की….लेकिन बहुत चाव से खाना खा रहा था।
"पुष्पा, तुम तब तक छत में चार कुर्सी लगा दो,थोड़ी देर में खाना खाकर वही जा बैठेगें हम लोग, और फिर नीचे आकर खाना खा लेना, " नंदू ने कहा।
पुष्पाकली छत में चली गयी, खाना खाने के बाद शादी जैसे गंभीर विषय पर मीटिंग होनी थी।
" लेकिन पापा छत में क्या करेंगे, मैंने सोना भी है," समीर बोला।
"रोज तो बारह एक बजे तक उठा रहता है, तब तो नही सोता" नंदू थोड़ा रौब में बोला, आखिर आज उसकी इज्जत का सवाल था।
"वो तो काम होता है ना, इम्पोर्टेन्ट काम के लिए जागना पड़ता है" समीर बोला।
"उस इम्पोर्टेन्ट काम से भी इम्पोर्टेन्ट काम है छत में, अब बहाने मत कर, मुझे पता है तेरी चालाकी, लेकिन मेरे आगे तेरी नही चलेगी" नंदू हंसते हुए गर्दन को गोल गोल घुमाकर समीर की तरफ देखकर बोला। जैसे जानबूझकर छेड़ रहा हो।
"बेटा वकील तो बस वकालत करता है, फैसले तो जज साहब के होते है" राजू ने कहा।
इस बात पर जबरदस्ती की हँसी हँसने को मजबूर समीर भी हँस पड़ा और मन्वी भी मुस्कराते हुए समीर की तरफ देखने लगी।
खाना खत्म करके चारो छत की तरफ चल पड़े। पुष्पाकली कुर्सी लगाकर सीढियां उतर रही थी तो नंदू ने पुष्पा से कहा- "सुनो….अगर बर्तन अभी ना भी धोने हो तो कोई बात नही सुबह आकर धो लेना, तुम खाना खाकर चले जाना और जो खाना बच जाए वो पैक कर ले जाना….बच्चे खा लेंगे, देर से जाना ठीक नही रहता। "
पुष्पाकली को धीरे धीरे समझ आने लगा था कि वो उस बूढ़े को गलत समझती है, वो प्यार से बात करता है, मेरी फिक्र करता है, लेकिन उसकी नजरो में खोट नही है, और वैसे भी ऐसे मालिक तो किस्मत वालो को मिलते है, जो दुख तकलीफ को समझे।
पुष्पाकली ने अपना हिस्से का खाना भी पैक किया और खाना घर जाकर खाने का प्लान बनाकर उतना समय बचाकर सारे बर्तन धो डाले, और फिर छत में जाकर बोल आयी कि वो जा रही है। बिना बताए खिसक लेना भी अच्छा नही।
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मीटिंग में क्या होगा ये कल जान पाएंगे, आज के लिए इतना ही, धन्यवाद
Swati chourasia
10-Oct-2021 08:43 PM
Very nice
Reply
Shalini Sharma
22-Sep-2021 11:56 PM
Nice
Reply